21.3.07

निष्‍ठुर दुनिया ब्‍लॉग की...

क्‍या बताऊं, अपने इस ब्‍लॉग पर मैंने शुरुआत कविता से की लेकिन क्‍या मालूम था कि लोग इतने निष्‍ठुर निकलेंगे। बताइए, कविता में एक सहज शारीरिक क्रिया 'पादना' का मैंने राजनीतिक प्रयोग किया और रतलाम से लेकर दिल्‍ली तक लोग उसे ही पकड़ सके। भाई, ठीक है कि कवि आउटडेटेड हो चुका है, इसका मतलब ये तो नहीं कि उसकी बेइज्‍जती की जाए।

अब समझ नहीं आ रहा है कि क्‍या लिखूं। इतने अच्‍छे माध्‍यम को लोगों ने एक-दूसरे की लड़ाई का मंच बना लिया है। आज ही मैंने अविनाश जी के ब्‍लॉग पर एक टिप्‍पणी की और उन्‍होंने पूरा फासिस्‍ट रवैया अपनाते हुए मेरा मुह नोच लिया, मुद्दे को टाल गए।

सोच रहा हूं, कि क्‍या किया जाए। रवि रतलामी भी रचनाकार पर तमाम साहित्‍य लिखते हैं, लेकिन उनका भी रवैया वैसा ही रहा। भाषा और शैली से लोग आगे बढ़ कर कविता का अर्थ समझते ही नहीं हैं।

सिर्फ एक जानकारी देना चाहूंगा...ब्रेख्‍त ने अपनी एक कविता में 'पादने' का प्रयोग किया है...क्‍या उनके बारे में भी अविनाश और रवि रतलामी का यही ख्‍याल होगा जो उन्‍होंने मेरे बारे में जाहिर किया है। पता नहीं, ब्‍लॉग के प्रसिद्ध लोगों ने ब्रेख्‍त को पढ़ा भी है नहीं या मैं ही ऐसा उदाहरण देकर खुश हो जा रहा हूं...बहुत निराशा हुई भाई लोगों आपकी दुनिया से...सोचा था कि कुछ असंपादित चीज़ें लिख पढ़ कर सुख उठाएंगे लेकिन यहां भी चैन नहीं...

9 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

आप कितना भी बेनाम रहें, आपकी शैली हमें बता रही है कि आप कौन हैं अ.श्री.। ब्‍लॉगिंग की दुनिया से आप पुराने परिचित हैं, और कइयों को आपने राह दिखायी है। बाद में पिछड़ गये तो कई तरह की कुंठाओं के शिकार होकर इस दुनिया को बेमतलब का बता कर कन्‍नी काट गये। अब दुबारे नकाब ओढ़ कर खेलने आये हैं। आपको ब्रेख्‍त से क्‍या मतलब। उन्‍होंने जो कहा, उसकी ज़ि‍म्‍मेदारी ली। आप तो सामने हैं ही नहीं, तो ज़ि‍म्‍मेदारी क्‍या लेंगे। इसलिए आपका शब्‍द प्रयोग एक खेल है, किसी राजनीतिक-सामाजिक संवेदना की अभिव्‍यक्ति नहीं। अगर अपनी नादानी की पोल खुलने से आपको निराशा हुई है, तो सचमुच दुनिया आपको बहुत शातिर लगेगी अ.श्री.।

अभय तिवारी ने कहा…

तिर्यक विचारक जी.. आप इतनी आसानी से निराश मत होइये..मैंने आप की कविता तो नहीं पढ़ी.. पर जिस टिप्पणी से आप इतना आहत हैं.. वो पढीं.. लोगों ने तो आपका स्वागत ही किया है..आप जो मन आये लिखिये पढ़िये.. टिप्पणी की इतनी परवाह क्यों कर रहे हैं.. एक तो आप विचारक हैं और फिर तिर्यक.. दूसरों की राय से इतनी जल्दी परेशान मत हों.. सीधी दुनिया में आप टेढ़े तरह से सोचें..और दुनिया की बराबर वाहवाही भी मिले.. ऐसा हो पाय तो क्या कहना.. मेरी शुभकामनायें..

बेनामी ने कहा…

आपको अपनी बात कहने का अधिकार है तो, अन्यों को अपनी अरूची दर्शाने का भी अधिकार है.
आप आलोचना नहीं चाहते तो टिप्पणी का विकल्प बन्द कर दें.
चिट्ठा आपका है, जो चाहे लिखें.

मसिजीवी ने कहा…

यह बेहद अनौपचारिक माध्‍यम है लोग वहीं लिखेंगे जो उनका मन होगा। इसलिए सच होगा।
इसका स्‍वागत करें।
और सबसे जरूरी बात, जारी रहें

बेनामी ने कहा…

तिर्यक जी, मैं तो यही कहूँगा कि दिल पर मत लीजिये और लिखते रहिये...

debashish ने कहा…

बंधुवर, ब्लॉग की दुनिया में आपको अपने पाठकों से खरी खरी सुनने की अपेक्षा रखनी ही होगी। यदि टिप्पणियाँ व्यथित करती हैं तो उन्हें बंद कर दें। पर टिप्पणियाँ में हमेशा वाह वाही ही मिलगी ये अपेक्षा रखना वैसा ही है जैसे कि प्रकृति से वर्ष भर एक ही रुत की माँग की जाय।

बेनामी ने कहा…

tiryak ji,
saadar pranaam. mohalle me aapke comments padhte huye aapke blog tak pahuchaa...sukoon huaa ki ab bhi acche shabdon se siddhant 'paadne' waale khauf khaate hain....aapko badhai......waise apnaa profile chupaanaa aapki 'shaabdik fitrat' ke khilaaf jaataa hai.hume ye jaanne ka pura haq hai ki aapki shakl mein ye naya yodha kaun hai jo blogs ke mahanton se alag jabaan bhi boltaa hai..aur asar bhi hotaa hai......
badhai.......

रवि रतलामी ने कहा…

बंधुवर,
मैंने लिखा था-
कविता जो भी हो, आपकी भाषा और शैली पसंद आई.

तो रचना की भाषा व शैली भी अगर पाठक का मन मोह लेती है तो वह रचना और रचनाकार सफल है!

निराश न हों, लोग पंच लाइन ही पकड़ते हैं!

एक बार फिर शुभकामनाएँ. ब्लॉग की दुनिया बेरहम जरूर है, निष्ठुर नहीं!

ePandit ने कहा…

संजय जी से सहमत हूँ कि: "आपको अपनी बात कहने का अधिकार है तो, अन्यों को अपनी अरूची दर्शाने का भी अधिकार है."

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